रायपुर

शिक्षा की ज़मीन पर सौदे का खेल! विश्वविद्यालय की संपत्ति पर ‘डाका’, अधिकारी पर आरोप

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय एक बड़े जमीन घोटाले के केंद्र में आ गया है। विश्वविद्यालय की लगभग 72 एकड़ (29.402 हेक्टेयर) की बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जे और कथित समझौते की खबरों ने पूरे शिक्षा जगत को हिला कर रख दिया है। आरोप है कि करोड़ों की इस संपत्ति को बचाने के बजाय, विश्वविद्यालय प्रशासन खुद कब्जाधारियों से गुपचुप ‘डील’ करने में जुटा है।

2005-06 में आवंटित हुई थी जमीन

इस जमीन को विश्वविद्यालय को राज्य शासन द्वारा 2005-06 में आवंटित किया गया था, जिसका पूरा भुगतान सरकारी खजाने से संबंधित भू-स्वामियों को कर दिया गया था। कानूनी रूप से ज़मीन का मालिकाना हक विश्वविद्यालय के पास है, इसके बावजूद अब यह कब्जे और सौदेबाज़ी की भेंट चढ़ती नजर आ रही है।

 मामला तहसील न्यायालय में विचाराधीन

अवैध कब्जे को लेकर रायपुर तहसीलदार के न्यायालय में मामला विचाराधीन है, और नोटिस भी जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद, विश्वविद्यालय की ओर से सख्त कानूनी लड़ाई के बजाय समझौता करने के प्रयास किए जाने के आरोप लग रहे हैं।

 “समझौते” की साजिश? बिलासपुर में बैठक की पुष्टि!

विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो, विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी और कब्जाधारी के बीच 23 जुलाई को बिलासपुर में मध्यस्थता केंद्र में बैठक हुई, जिसमें खसरा नंबर 499 की एक एकड़ (0.348 हेक्टेयर) जमीन को कब्जाधारी के नाम करने की योजना पर चर्चा हुई। यदि यह “समझौता” न्यायालय में पेश हो जाता, तो यूनिवर्सिटी अपनी जमीन से कानूनी रूप से भी हाथ धो बैठती।

 पूर्व रजिस्ट्रार पर भी मिलीभगत के आरोप

सूत्रों का कहना है कि इस जमीन विवाद में पूर्व रजिस्ट्रार की भूमिका भी संदिग्ध रही है। आरोप है कि पहले भी कब्जाधारियों को रास्ता देने के लिए अंदरूनी साठगांठ की गई थी।

रजिस्ट्रार का खंडन – “कोई समझौता नहीं होगा”

विवाद के बीच वर्तमान रजिस्ट्रार अबर व्यास ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा,

“विश्वविद्यालय प्रशासन ने न तो कोई समझौता किया है, और न ही करेगा। कब्जाधारी से जमीन केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही वापस ली जाएगी। कोई मिलीभगत बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”

अब सबसे बड़ा सवाल — क्या जमीन बचा पाएगा विश्वविद्यालय?

अब यह देखना होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इन आरोपों की पारदर्शी जांच कराकर अपनी जमीन को बचा पाता है या फिर यह मामला भी भ्रष्टाचार और मिलीभगत की भेंट चढ़कर शिक्षा के मंदिर की साख पर धब्बा बन जाएगा।

चतुर मूर्ति वर्मा, बलौदाबाजार

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