ज़मीन पर सोना पड़ा भारी, सांप के डसने के बाद झाड़फूंक में गई महिला की जान

जशपुर। जिले के कुनकुरी थाना क्षेत्र के लोटापानी गांव में कोरवा जनजाति की एक महिला की सर्पदंश से मौत ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर कर दिया है, बल्कि ग्रामीण अंचल में व्याप्त अंधविश्वास की भी कड़वी सच्चाई सामने ला दी है।
घटना 49 वर्षीय सनारी बाई कोरवा की है, जो अपने परिवार के साथ जमीन पर सो रही थी। देर रात लगभग 3 बजे उसे ज़हरीले करैत सांप ने बाएं कंधे पर डस लिया। इसके बावजूद उसने तत्काल अस्पताल जाने के बजाय बैगा से झाड़फूंक कराना चुना। वह अपने नाती के साथ डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर बैगा के पास पहुँची, जहाँ घंटों झाड़फूंक चलता रहा, और कीमती समय हाथ से निकल गया।
मदद देर से पहुँची, पर तब तक हो चुकी थी बहुत देर
सुबह लगभग 6 बजे जब महिला की हालत बिगड़ने लगी और वह बेहोश हो गई, तब गांव की मितानिन की पहल पर उसे कुनकुरी के सरकारी अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने तत्काल एंटी स्नेक वेनम देकर इलाज शुरू किया और उसे होलीक्रॉस अस्पताल रेफर कर दिया।
हालांकि, होलीक्रॉस अस्पताल में प्राथमिक जांच के बाद मरीज को यह कहकर फिर से सरकारी अस्पताल भेज दिया गया कि बेहतर दवाइयां वहीं मिलेंगी। इस दौर-धूप और भ्रम के बीच समय बीतता गया, और जब तक उसे फिर से सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया, तब तक उसकी हालत गंभीर रूप से बिगड़ चुकी थी। इलाज के कुछ समय बाद ही सनारी बाई ने दम तोड़ दिया।
व्यवस्था और विश्वास दोनों नाकाम
सनारी बाई की मौत केवल एक सामान्य सर्पदंश से नहीं हुई, बल्कि यह स्वास्थ्य व्यवस्था की ढील, अंधविश्वास की जड़ें, और प्राथमिक चिकित्सा तक सही समय पर पहुंच न पाने की दुखद कहानी है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि सर्पदंश के तुरंत बाद एंटी वेनम इंजेक्शन दे दिया जाए तो 90% मामलों में जान बचाई जा सकती है। परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी झाड़फूंक जैसे उपायों में समय गंवाना आम बात है।
जरूरत है जागरूकता की
इस दुखद घटना ने फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में जनजागरूकता अभियान चलाना जरूरी है। ताकि ऐसी मौतें भविष्य में रोकी जा सकें।