बस्तर में विकास की नई सुबह: नक्सलवाद अंतिम चरण में, सड़क–बिजली–शिक्षा से बदल रहा परिदृश्य

रायपुर। कभी नक्सलवाद के गढ़ के रूप में कुख्यात बस्तर अब विकास, विश्वास और बदलाव का प्रतीक बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार के निर्णायक कदमों और सुरक्षा बलों की सघन कार्रवाई ने माओवाद को उसके अंतिम दौर में पहुँचा दिया है। पिछले डेढ़ साल में 435 नक्सली मुठभेड़ों में माओवादी मारे गए, 1,432 ने आत्मसमर्पण किया और 1,457 गिरफ्तार हुए। बीजापुर के कर्रेगुड़ा में 31 नक्सलियों के मारे जाने को माओवादी आतंक पर निर्णायक प्रहार माना जा रहा है।
सरकार ने आत्मसमर्पण करने वालों के लिए देश की सर्वश्रेष्ठ पुनर्वास नीति लागू की है, जिसमें तीन साल तक प्रतिमाह 10,000 रुपये स्टाइपेंड, कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार, नकद इनाम और भूमि आवंटन जैसी सुविधाएँ शामिल हैं। लक्ष्य है—मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को नक्सलवाद मुक्त करना।
बस्तर में पहुँच रही विकास की रोशनी
आज़ादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ के रेकावाया जैसे गाँव में स्कूल बन रहा है, जहाँ कभी माओवादी अपने “स्कूल” चलाते थे। बंद पड़े 50 से अधिक स्कूल फिर से खुल गए हैं। बिजली के मोर्चे पर हिड़मा के पैतृक गाँव पूवर्ति और बीजापुर के चिलकापल्ली जैसे इलाकों में पहली बार बल्ब जले हैं।
सड़क निर्माण में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है—माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 275 किमी लंबी 49 सड़कें और 11 पुल बन चुके हैं। इंद्रावती नदी पर नया पुल और रावघाट–जगदलपुर 140 किमी नई रेल परियोजना की स्वीकृति से कनेक्टिविटी को नई उड़ान मिलेगी। 607 मोबाइल टावर चालू हो चुके हैं, जिनमें से 349 को 4जी में अपग्रेड किया गया है।
नियद नेल्ला नार योजना से गाँव–गाँव तक सरकारी योजनाएँ
54 सुरक्षा कैंपों के 10 किमी दायरे में 327 से अधिक गाँवों में सड़क, बिजली, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड और वन अधिकार पट्टे जैसी सुविधाएँ पहुँची हैं। इस योजना ने ऐसा विश्वास बनाया है कि कई गाँवों में पहली बार पंचायत चुनाव और ध्वजारोहण संभव हुआ है।
बोधघाट परियोजना और आर्थिक बदलाव
50,000 करोड़ रुपये की बोधघाट सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है। इससे 8 लाख हेक्टेयर में सिंचाई और 200 मेगावाट बिजली उत्पादन संभव होगा। तेंदूपत्ता संग्राहकों की दर बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति बोरा कर दी गई है, जिससे 13 लाख परिवारों को लाभ हुआ है।
संस्कृति और खेल से बदलती पहचान
जहाँ कभी गोलियों की आवाज गूँजती थी, वहाँ अब “बस्तर ओलंपिक” में 1.65 लाख प्रतिभागी और “बस्तर पंडुम” में 47,000 कलाकार भाग ले रहे हैं। परंपरागत जनजातीय जनों को 5,000 रुपये वार्षिक सम्मान निधि दी जा रही है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के शब्दों में—”बस्तर का विकास ही नवा छत्तीसगढ़ का आधार है। अब यहाँ डर नहीं, बल्कि उम्मीद और तरक्की की नई सुबह है।”