660 करोड़ का सीजीएमएससी घोटाला: ईडी की जांच में अफसर-कंपनी मिलीभगत उजागर, जल्द हो सकती हैं गिरफ्तारियां

रायपुर | छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) में हुए 660 करोड़ रुपये के घोटाले में स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन और पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका गंभीर रूप से संदेह के घेरे में है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दुर्ग स्थित मोक्षित कॉर्पोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा के ठिकानों पर छापेमारी में मिले दस्तावेजों और पूछताछ के दौरान कई बड़े खुलासे किए हैं।
जांच में सामने आया है कि शशांक ने सीजीएमएससी में हुई खरीदी और निविदा प्रक्रिया में वरिष्ठ अधिकारियों की संलिप्तता की पूरी जानकारी ईडी को दी। इसके आधार पर तत्कालीन अफसरों के साथ कई पूर्व पदस्थ अधिकारियों को भी जांच के घेरे में लाया गया है। सभी को समन जारी कर पूछताछ और बयान दर्ज किए जा रहे हैं।
ईडी के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि मोक्षित कॉर्प, सीबी कॉर्पोरेशन, रेकॉर्डर्स एंड मेडिकेयर सिस्टम (पंचकूला), श्री शारदा इंडस्ट्रीज और स्वास्थ्य सेवा निदेशालय के कुछ अधिकारियों ने आपसी मिलीभगत से अभिकर्मकों की कीमतें कई गुना बढ़ाईं, दर अनुबंधों का अनुचित लाभ उठाया और प्रशासनिक व बजटीय जांचों को दरकिनार किया।
सबसे हैरान करने वाला तथ्य यह रहा कि 2,352 रुपये प्रति पीस खरीदी गई इंडीटीए ट्यूबों का वास्तविक बाजार मूल्य महज 8.50 रुपये था। वहीं, 5 लाख रुपये में मिलने वाली सीबीसी मशीनों को निविदा में हेरफेर कर 17 लाख रुपये प्रति मशीन में खरीदा गया। आश्चर्यजनक रूप से, बिना किसी मानक विनिर्माण इकाई या अस्पताल स्तर के उत्पादन आधार के बावजूद मोक्षित कॉर्प को ठेका मिल गया।
ईडी की एफआईआर के अनुसार, संवेदनशील डायग्नोस्टिक रिएजेंट्स की सप्लाई में कोल्ड स्टोरेज मानकों को अनदेखा करते हुए, बिना बजट मंजूरी और तकनीकी आवश्यकता के, जल्दबाजी में ऑर्डर जारी किए गए। नतीजतन, करीब 300 करोड़ रुपये के रिएजेंट 200 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिना इस्तेमाल पड़े रहे।
शशांक चोपड़ा को एसीबी जनवरी 2025 में गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है, और अब ईडी ने उनके व परिजनों की 40 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्तियां अटैच कर दी हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस घोटाले में शामिल कई अधिकारियों की भूमिका तय होते ही गिरफ्तारी की कार्रवाई की जाएगी और पूरक चालान कोर्ट में पेश किया जाएगा।