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विधेयकों पर राज्यपालों की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अहम बहस

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान की ताकत और इसकी अहमियत को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने कहा कि हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए, क्योंकि यह जनता के अधिकारों की रक्षा करता है और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करता है। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को किसी भी कानून से जुड़े सार्वजनिक महत्व के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने का अधिकार है, जो संविधान की शक्ति को और मजबूत करता है।

सुनवाई के दौरान नेपाल में इस सप्ताह और बांग्लादेश में पिछले साल जुलाई में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों का भी जिक्र हुआ। अदालत में 12 अप्रैल के आदेश पर राष्ट्रपति के संदर्भ में सुनवाई हुई थी, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय करने का मुद्दा उठाया गया था।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राज्यपालों द्वारा विधेयक रोके जाने के उदाहरण मौजूद हैं। इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि 2014 के बाद इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं, जबकि इससे पहले ऐसा नहीं होता था। जवाब में मेहता ने कहा कि उन्होंने 1970 से अब तक का डेटा पेश किया है और यह दिखाता है कि संविधान कैसे काम करता है।

महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल किसी भी सूरत में केंद्र सरकार के एजेंट नहीं होते। वे न्यूट्रल संवैधानिक पदाधिकारी होते हैं और संविधान के अनुसार ही काम करते हैं। राज्यपाल का काम राज्य सरकार की नीतियों को लागू करना नहीं बल्कि निष्पक्ष रहकर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच संतुलन बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल का रोल संविधान में स्पष्ट है और वह राजनीतिक दृष्टिकोण भी रख सकते हैं।

चतुर मूर्ति वर्मा, बलौदाबाजार

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