रायपुर

हाईकोर्ट से बड़ी राहत: भू-अर्जन घोटाले में फंसे SDM तीर्थराज अग्रवाल आरोपमुक्त

रायपुर | छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में वर्ष 2013 में हुए एक बहुचर्चित भू-अर्जन घोटाले के मामले में तत्कालीन भू-अर्जन अधिकारी और अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) तीर्थराज अग्रवाल को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। माननीय न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की एकलपीठ ने अग्रवाल के विरुद्ध जारी आरोप पत्र को निरस्त कर दिया है।

क्या है मामला?

वर्ष 2013 में तीर्थराज अग्रवाल की पदस्थापना डिप्टी कलेक्टर के रूप में रायगढ़ के पुसौर तहसील में हुई थी। वहां वे भू-अर्जन अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। उसी दौरान झीलगिटार गांव की भूमि एनटीपीसी परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। पूरी प्रक्रिया – अधिसूचना, अवार्ड पारित करना और मुआवजा वितरण – उनके कार्यकाल में संपन्न हुई।

विवाद की शुरुआत

17 अप्रैल 2014 को गिरधारी अग्रवाल नामक व्यक्ति ने मुआवजा राशि (₹7 लाख) लौटाने की बात कहते हुए आवेदन दिया, यह कहते हुए कि पारिवारिक जमीन के बंटवारे को लेकर विवाद हो सकता है। इसके बाद एक गुमनाम शिकायत सामने आई, जिसमें भू-अर्जन में फर्जीवाड़े का आरोप लगाया गया। जांच में सामने आया कि यूको बैंक में फर्जी नामों से खाते खोले गए थे और उनमें मुआवजा राशि भेजी गई।

आरोप क्या थे?

तीर्थराज अग्रवाल पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने खाताधारकों के दस्तावेजों की विधिवत जांच किए बिना ही चेक जारी किए, जिससे मुआवजा फर्जी खातों में पहुंच गया। उनके खिलाफ थाना पुसौर में FIR संख्या 79/2014 के अंतर्गत IPC की धारा 420, 467, 468, 471, 506(बी), 120(बी) और 34 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया।

हाईकोर्ट में दायर याचिका

तीर्थराज अग्रवाल ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं राजीव श्रीवास्तव और मतीन सिद्दीकी के माध्यम से याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि:

भूमि अधिग्रहण में अवार्ड पारित करना एक राजस्व न्यायिक कार्य है, जो जज प्रोटेक्शन एक्ट, 1985 के तहत संरक्षित है।

प्राथमिकी में उनका नाम नहीं था।

किसी भी गवाह ने धारा 161 के तहत उनके विरुद्ध बयान नहीं दिया।

विभागीय जांच पहले ही 20 नवंबर 2024 को समाप्त हो चुकी थी और उसमें दोषमुक्त घोषित किया गया था।

उच्च न्यायालय का फैसला

इन तथ्यों को देखते हुए उच्च न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के खिलाफ न तो कोई ठोस साक्ष्य हैं और न ही उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता सिद्ध होती है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अभियोजन की कार्रवाई न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग जैसी प्रतीत होती है।

चतुर मूर्ति वर्मा, बलौदाबाजार

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